Tuesday 8 April 2014

जाति-पाति रंग-रूप और पैसा भाग-१

मैं एक बार किसी महात्मा से मिला या यूँ कहें कि अपने कुलगुरु से मिला जो हमेशा मुझे नास्तिक समझते हैं। मैंने उनसे कुछ साधारण से सवाल किये कि जाति-पाति का क्या महत्व है? उन्होंने कहा जाति होता क्या है भगवन ने हमें सिर्फ इंसान बनाया और हम सिर्फ इंसान हैं न हिन्दू न मुस्लमान। मैंने पूछा की क्या यह सिर्फ कहने-सुनने की बातें है या धरातल पे भी है? उन्होंने कहा हाँ बिलकुल है। मैंने फिर पूछा क्या अगर मैं किसी मुस्लिम कन्या से विवाह करूँ तो आपकी मंजूरी होगी? उन्होंने कहा - विवाह स्वजातीय होनी चाहिए।
ठीक यही सवाल मैंने उनके परम शिष्य से पूछा उनका जवाब था - धरातल पे विरले ही देखने को मिलता है लेकिन सच यही है की हम सिर्फ इन्सान हैं। और अगर आप किसी भी कन्या से विवाह करें किसी को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए।
मुझे पता चला की गुरु जी  अपने उस परम शिष्य के लिए कन्या की तलाश में हैं। मैंने जानने की कोशिस की कि उनका मापदंड क्या है किसी कन्या को चुनने का। पता चला कन्या गोरी होनी चाहिए, पढ़ी लिखी होनी चाहिए,  और तो और उन्हें एक चार चक्का गाड़ी की भी दरकार थी। मुझसे रहा न गया मैं फिर उनसे सवाल किया। गुरूजी , आपके मापदंड में गोरी होना क्यों अवश्यक है?  अगर कोई काली या सव्न्ली है तो उसमे उसका क्या दोष? जवाब में वो गुस्सा कर गए- मुझे तुम व्यावहारिकता का ज्ञान मत दो मुझे इस चीज़ की समझ अच्छी है।और आध्यात्मिकता को इससे मत जोड़ो।
मेरे समझ में ये आजतक नहीं आया कि दोनों स्वतंत्र कैसे हो सकते है? आप इस दुनिया में रहते हैं तो व्यावहारिकता से बच नहीं सकते और अगर किसी का खून करना व्यवहारिकता में गलत है तो अध्त्यम इसे सही करार कैसे दे सकती है?
मेरे सवालों का जवाब तो नहीं मिला लेकिन एक सलाह मिली उनके परम शिष्य से कि आप ओशो का अध्यन कीजिये आपको जबाब मिलेगा। ओशो को तो नहीं पढ़ सका अब तक कोशिश जरूर  करूँगा जबाब जानने की।